गणेश चतुर्थी पूजा
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव का पर्व है। यह पर्व हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और शुभ कार्यों के आरंभ में पूजे जाने वाले देवता माना जाता है। इस दिन उनकी मूर्ति स्थापित कर, श्रद्धा और भक्ति से पूजा-अर्चना की जाती है।
गणेश चतुर्थी का महत्व
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विघ्नों का नाश:
- भगवान गणेश की पूजा से सभी बाधाओं और विघ्नों का नाश होता है।
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शुभता का प्रतीक:
- यह पर्व नए कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
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ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति:
- भगवान गणेश विद्या, बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं। उनकी पूजा से मानसिक विकास और सफलता प्राप्त होती है।
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समृद्धि और सौभाग्य का आह्वान:
- भगवान गणेश की कृपा से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।
गणेश चतुर्थी पूजा सामग्री
- भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र।
- सिंदूर, चावल, दूर्वा (घास)।
- लाल कपड़ा और मोली।
- कलश और जल।
- पंचामृत (दूध, दही, शहद, चीनी, और घी)।
- पुष्प और माला।
- नारियल, सुपारी, और पान के पत्ते।
- मिठाई (विशेष रूप से मोदक)।
- अगरबत्ती और दीपक।
गणेश चतुर्थी पूजा विधि
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मूर्ति स्थापना:
- पूजा के दिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- घर के साफ और पवित्र स्थान पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति को लाल कपड़े पर रखें।
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कलश स्थापना:
- गणपति के पास कलश में जल भरकर उसमें आम के पत्ते और नारियल रखें।
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गणपति का आवाहन:
- भगवान गणेश का आवाहन निम्न मंत्र से करें:
- "ॐ गं गणपतये नमः।"
- भगवान गणेश का आवाहन निम्न मंत्र से करें:
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पूजा सामग्री अर्पण:
- गणपति को सिंदूर, चावल, और दूर्वा अर्पित करें।
- पुष्प, माला, और पान के पत्ते चढ़ाएँ।
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भोग अर्पण:
- गणपति को मोदक, लड्डू, और फल का भोग लगाएँ।
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पंचामृत स्नान:
- भगवान गणेश की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएँ और फिर स्वच्छ जल से शुद्ध करें।
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आरती:
- गणपति की आरती करें।
- "जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा..."
- गणपति की आरती करें।
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प्रसाद वितरण:
- पूजा के अंत में भोग को सभी के बीच प्रसाद के रूप में वितरित करें।
विशेष मंत्र
- "ॐ गं गणपतये नमः।"
- "वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥"
गणेश चतुर्थी का पर्व भक्तों के लिए आत्मिक शांति, मानसिक संतुलन, और जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। भगवान गणेश की कृपा से जीवन में सभी प्रकार के कष्ट और विघ्न समाप्त होते हैं।