पितृ पक्ष श्राद्ध पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो हमारे पूर्वजों (पितरों) की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। पितृ पक्ष आमतौर पर भाद्रपद माह की पूर्णिमा से अश्विन माह की अमावस्या तक 15 दिनों का समय होता है, जिसे श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष कहते हैं। इस अवधि में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के माध्यम से पितरों को प्रसन्न किया जाता है।
श्राद्ध पूजा का महत्व:
- पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए।
- परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और शुभता लाने के लिए।
- हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए।
- कुंडली में पितृ दोष को समाप्त करने के लिए।
- धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों की पूजा के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं माना जाता।
पितृ पक्ष श्राद्ध विधि:
1. पूजा की तैयारी:
- एक पवित्र स्थान का चयन करें।
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करें, क्योंकि यह पितरों की दिशा मानी जाती है।
- पूजा के लिए सामग्री तैयार करें जैसे कि काले तिल, जल, कुशा, जौ, दूध, गंगाजल, चावल, पुष्प, धूप-दीप, मिठाई, और भोजन।
2. तर्पण:
- कुशा और जल लेकर पितरों को समर्पित करें।
- मंत्रों का उच्चारण करते हुए पितरों का आवाहन करें और उन्हें जल अर्पित करें।
- तर्पण मंत्र:
"ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः।"
3. पिंडदान:
- पके हुए चावल, जौ, तिल और घी से पिंड बनाएँ।
- इन पिंडों को पितरों को अर्पित करें।
- पिंडदान के बाद कौवों, गायों और कुत्तों को भोजन कराएँ, क्योंकि इन्हें पितरों का प्रतीक माना जाता है।
4. भोजन दान:
- ब्राह्मणों को भोजन कराएँ और उन्हें दान दें।
- भोजन में विशेष रूप से खीर, पूड़ी, चावल, और सीधा भोजन (सादा भोजन) शामिल करें।
5. ध्यान और प्रार्थना:
- पितरों से क्षमा प्रार्थना करें और उनके आशीर्वाद की कामना करें।
- विष्णु भगवान या शिवजी का ध्यान करें।
पितृ पक्ष में पालन करने योग्य नियम:
- सात्विक भोजन का सेवन करें और तामसिक भोजन (मांसाहार, लहसुन, प्याज) से बचें।
- किसी का अनादर न करें और सदाचार का पालन करें।
- तर्पण और श्राद्ध के लिए काले तिल का उपयोग करें।
- पितरों को प्रसन्न करने के लिए कौवे, गाय और कुत्तों को भोजन कराएँ।
पितृ पक्ष का महत्व:
पितृ पक्ष हमें अपने पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। इसे करने से हमारे जीवन के कष्ट कम होते हैं और हमारा मन और आत्मा शुद्ध होती है।
श्राद्ध पूजा को विधि-विधान से किसी योग्य ब्राह्मण के मार्गदर्शन में करना चाहिए।